Saturday, April 19, 2025

ज़िंदगी का अनमोल सफर: खुशियों, ग़मों और बेहतर इंसान बनने की कहानी

ज़िंदगी एक ऐसा सफर है, जिसकी खूबसूरती उसके अनजान मोड़ों में छिपी है. ये एक पहाड़ी रास्ता है, जिसमें कभी चढ़ाई की कठिनाई है, तो कभी घाटी की मनमोहक छटा. हंसते हुए पलों की चमक भी है, तो आंसुओं की खामोशी भी. हर कदम पर एक नया अनुभव, हर अनुभव में एक अनोखी सीख, यही तो है ज़िंदगी का सार. 

यह एक अद्वितीय और रहस्यमय सफर है जिसमें हर पल नई कहानियों और सीखों का संगम होता है। जीवन एक उत्कृष्ट उपहार है जो हमें ईश्वर द्वारा प्रदान किया गया है। जीवन में अनगिनत संभावनाएं होती हैं, और हमें उन्हें स्वीकार करने का धैर्य रखना चाहिए। जीवन एक सफलता नहीं, बल्कि एक संघर्ष भरा सफर है जिसमें हर कदम एक नया सिक्का होता है। हमें अपने मार्ग पर सच्चाई और सही दिशा में बने रहने का ज़िम्मा है।

बचपन की मस्ती, ज़िंदगी के रंग:

यादों के पिटारे को खोलें तो बचपन की हंसी ज़रूर ही आपके चेहरे पर मुस्कान ला देगी. वो मिट्टी के घरौंदे बनाना, पेड़ों पर चढ़ना, बारिश में नहाना, और दोस्तों के साथ शरारतें करना, क्या ही खूबसूरत थे वो पल! ज़िंदगी के कैनवास पर ये वो रंग हैं, जो हमेशा जगमगाते रहते हैं.  ज़िंदगी का वो सुकून और खूबसूरती, जो बचपन में होती है, वो शायद ही दोबारा कभी मिल पाए. बचपन एक ऐसा सफर है, जहां हर पल एक नई खोज, हर अनुभव एक अनोखी सीख और हर हंसी दुनिया के किसी भी खज़ाने से ज़्यादा कीमती है.  

     बचपन वो समय है, जहां जिम्मेदारियों का बोझ नहीं होता, सिर्फ हंसी-खेल और उन्मुक्त उड़ान होती है. पेड़ों पर चढ़ना, कीचड़ में खेलना, बारिश में नहाना, दोस्तों के साथ शरारतें करना, ये वो पल हैं जो जिंदगी भर याद रह जाते हैं. इस उम्र में दुनिया एक बड़ा खेल का मैदान होती है, जहां हर पत्थर ग़नीम होता है और हर पेड़ एक महल. ये मस्ती ही बचपन को सबसे खूबसूरत बनाती है. बचपन रिश्तों की नींव भी रखता है. दोस्ती का पहला नशा, भाई-बहन का प्यार, मां-बाप का अटूट स्नेह, ये सब बचपन में ही पैदा होते हैं. ये रिश्ते बच्चों को सुरक्षा का एहसास देते हैं और उन्हें ज़िंदगी का असली मतलब समझाते हैं. इन रिश्तों की मजबूती ही उनके भविष्य को भी मजबूत बनाती है. बचपन खुद को खोजने का भी एक सफर है. इस सफर में हर अनुभव, हर सीख हमारे व्यक्तित्व को बनाने में एक ईंट लगाती है. तो आइए, हम सब मिलकर बचपन को संजोएं. बच्चों को अपनी मस्ती करने दें, उनकी कल्पना को उड़ने दें, उनके सवालों के जवाब दें. उनकी जिज्ञासा को कम न करें, बल्कि बढ़ाएं. उनके साथ हंसे, खेले, और उनकी मासूम दुनिया का हिस्सा बनें. यही बच्चों को सबसे बड़ा तोहफा होगा और हमें भी उनके बचपन की खूबसूरती का एहसास दिलाएगा.

बचपन भले ही बीत जाए, लेकिन उसकी यादें हमेशा ज़िंदगी में खुशबू की तरह बनी रहती हैं. कोशिश करें कि हर किसी के बचपन को उतना ही खूबसूरत बनाएं, जितना वो होना चाहिए.

युवा जोश, सपनों की उड़ान:

जवानी का समय है सपने देखने का, लक्ष्य तय करने का, और उनके पीछे हौंसले से जुट जाने का. पहली नौकरी, पहला प्यार, पहली सफलता, ये पल हमारे जीवन को दिशा देते हैं. ज़िंदगी के इस पड़ाव पर ज़िम्मेदारियां आती हैं, पर चुनौतियों को पार कर पाने का जो जज़्बा होता है, वही तो इसे खास बनाता है. जैसे-जैसे समय बीतता है, हम अनुभवों के ज़रिए परिपक्व होते जाते हैं. हम सीखते हैं कि खुशियों के साथ ग़म भी ज़िंदगी का एक ज़रूरी हिस्सा है. हम रिश्तों की अहमियत समझते हैं, दूसरों की खुशियों में अपनी खुशियां ढूंढते हैं. परिपक्वता का ये सफर हमें ज़िंदगी के सच्चे सौंदर्य को पहचानना सिखाता है. हर किसी की ज़िंदगी में अलग-अलग चुनौतियां आती हैं. कभी असफलता का सामना करना पड़ता है, तो कभी किसी प्रियजन को खोने का ग़म. ये मुश्किल पल हमें कमज़ोर कर सकते हैं, लेकिन हमें हार नहीं माननी चाहिए. इन चुनौतियों से ही हम सीखते हैं, ज़िंदगी की कदर करना सीखते हैं, और खुद को बेहतर इंसान बनने का मौका मिलता है. जीवन का सार सिर्फ अपनी खुशियों के पीछे भागना नहीं है. ये दूसरों की खुशियों में शामिल होने, रिश्तों को निभाना, और समाज के लिए कुछ अच्छा करने के बारे में भी है. जब हम किसी की मदद करते हैं, किसी को मुस्कुराते हुए देखते हैं, तो ज़िंदगी का एक अलग ही सुकून मिलता है. यही सच्चा सुख है, यही ज़िंदगी का असली मक़सद है. 

   ये तो बस जीवन के कुछ ही रंग हैं, इसकी अनगिनत कहानियां अभी बाकी हैं. तो चलिए, इस खूबसूरत सफर को हौंसले से अपनाएं, हर पल का आनंद लें, और हर चुनौती से सीखते हुए आगे बढ़ें. याद रखिए, ज़िंदगी एक अनमोल उपहार है, इसे खुलकर जीएं! अद्भुत प्राकृतिक सौंदर्य और सांसारिक रंग-बिरंगी विविधता हमें जीवन के सौंदर्य का अनुभव करने का अवसर प्रदान करती हैं। जीवन की इस भूमिका में हमें प्राकृतिक सौंदर्य की महत्वपूर्णता का महसूस होता है और हम इसे न सिर्फ देखते हैं, बल्कि उसका समर्थन और संरक्षण करते हैं। जीवन एक अद्वितीय और अनमोल उपहार है जो हमें दिया गया है। हमें हर एक पल का आनंद उठाना चाहिए। जीवन को सजीव बनाए रखने के लिए इस सफर की सुंदरता हमेशा हर कदम पर हमारे साथ बनी रहनी चाहिए।
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Friday, June 19, 2015

मेरी माँ से कहना वह रोया न करे


मैं अक्सर मां से कहता था माँ! 
 प्रार्थना करना कभी तेरा यह बेटा खाकी वर्दी पहने 
 सीने पे पदक सजाये 
शहीदो  का सा नूर लिए
 तेरे सामने गर्व से खड़ा हो, 

 और मेरी माँ मेरी माँ यह सुनकर हंस दिया करती थी 

कभी जो तुम्हें मेरी माँ मिले तो 
उससे कहना वह अभी भी हंसती रहा करे, 
कि शहीदों की माताओं रोया नहीं करतीं। । । ।

 मैं अक्सर मां से कहता था 
 उस दिन का इंतजार करना, 
 जब धरती तेरे बेटे को पुकार लगाये , 
 और इन महान पर्वतो  के बीच बहते निर्मल नदी का नीला पानी, 
 और स्वात की घाटियों  में बारिश के कणो  की तरह 
गिरती प्रकाश की किरणे तेरे बेटे को पुकार लगाये। 

 और फिर उस दिन के बाद, 
 मेरा इंतजार न करना, 
 कि खाकी वर्दी में जाने वाले अक्सर, 
 हरे  तिरंगे  में लौट आते हैं

। । । मगर मेरी माँ। । ।
 आज भी मेरा इंतजार करती है, 
 घर की चौखट पे बैठी पल गिनती रहती है, । । । 

 कभी जो तुम्हें मेरी माँ मिले तो इससे कहना,
 वह घर की चौखट पे बैठे  मेरा इंतजार न करे। । । । 
 खाकी वर्दी में जाने वाले लौटकर कब आते हैं? 

 मैं अक्सर मां से कहता था याद रखना!
 इस धरती के सीने पे मेरी बहनों के आंसू गिरे थे, 
 मुझे वह आंसू उन्हें लौटाने हैं। । । 

 मेरे साथियों के सिर काटे गए थे 
 और उनका लहू इस मिट्टी से लाल कर दिया गया था .. 
 मुझे मिट्टी में मिलने वाले इस लहू का कर्ज उतारना  है। । । 

 और मेरी माँ यह सुनकर नम आंखों से मुस्कुरा दिया करती थी। । ।

 कभी जो तुम्हें मेरी माँ मिले तो इससे कहना 
 उसके बेटे ने लहू का कर्ज चुका दिया था । । 

 मैं अक्सर मां से कहता था 
 मेरा वादा मत भूलना , 
 कि युद्ध के इस क्षेत्र में मानवता के दुश्मन 
दरिंदों को  यह बहादुर बेटा वापस नहीं बुलाएगा 
 और सारी गोलियां सीने पे खाएगा 

 और मेरी माँ यह सुनकर तड़प जाया करती थी 

 कभी जो तुम्हें मेरी माँ मिले तो इससे कहना, 
 उसका बेटा बुजदिल  नहीं था, 
 उसने पीठ नहीं दिखाई थी, 
 और सारी गोलियां सीने पे खाई  थी। .. । 

 मैं अक्सर मां से कहता था, 
 तुम सैनिकों को प्यार क्यों करती हो? 
 तुम सैनिकों से प्यार न किया करो,
माँ! हमारे जनाज़े हमेशा जवान उठाते  हैं। । । 

 और मेरी माँ  यह सुनकर रो दिया करती थी 

 कभी जो तुम्हें मेरी माँ मिले तो इससे कहना, 
 वह सैनिकों से प्यार न करे। । । 
 और दरवाजे की चौखट पे बैठे  मेरा इंतजार न करे 
 सुनो। । ।! तुम मेरी माँ से कहना वह रोया न करे। । ।
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Tuesday, June 16, 2015

उसके सजदे को कोई यूँही व्यर्थ ने कह दे

मेरे सर पर भी माँ की दुआओं का साया होगा 
इसलिए समन्दर ने मुझे डूबने से बचाया होगा 

 माँ की आगोश में लौट आया है बेटा फिर से 
शायद दुनिया ने उसे बहुत सताया होगा 

 अब उसकी मोहब्बत की कोई क्या मिसाल दे 
जिसने काट के अपना पेट  बच्चों को खिलाया होगा 

 की थी इनायत उमर भर बच्चो  के लिए 
क्या गुजरी होगी उसपे जब हाथ में आया कासा होगा 

 कैसे मिलेगी  जन्नत उस औलाद को 
जिसने माँ से पहले बीवी का फ़र्ज़ निभाया होगा 

और उसके सजदे को कोई यूँही व्यर्थ ने कह दे 
शायद इसीलिए "माँ "  में जन्नत को बनाया होगा। 
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Thursday, March 21, 2013

भगोरिया पर्व ! आदिवासी संस्कृति की अदभूत मिसाल

                      झाबुआ एवं अलीराजपुर जिले का भगौरिया पर्व प्रदेश को संस्कृति के क्षेत्र में विश्व मानचित्र में विशेष स्थान दिलाता है। ग्रीष्म ऋतु की दस्तक के एहसास के साथ आम के मौरो की खुशबू से सराबोर मदमस्त फागुनी हवाओं के झोको के साथ आदिवासियों का लोकप्रिय पर्व भगौरिया होलिका दहन होने के सात दिन पूर्व से प्रारंभ होता है। आदिवासी अंचलों में भगौरिया हाट प्रारंभ होने के सात दिन पूर्व से जो बाजार लगते है, उन्हें आदिवासी अंचल में त्यौहारिया हाट अथवा सरोडिया हाट कहते है। भगौरिया पर्व आदिवासियों का महत्वपूर्ण त्यौहार है। इसलिए भगौरियाहाट प्रारभ होने से पूर्व के साप्ताहिक हाट में इस त्योहार को मनाने के लिए अंचल के आदिवासी ढोल, मादल, बॉसूरी, कपडे,गहने एवं अन्य आवश्यक वस्तुओंकी खरीददारी करते है। अर्थात साज-सज्जा का सामान खरीदते है। इसीलिए इन्हेंत्यौहारिया हाट कहा जाता है। 

                                                   क्या है भोंगर्या अथवा भगोरिया पर्व 
        कुछ लोग इसे पारंपरिक प्रणय पर्व भी कहते है। कहां जाता है कि इन हाट बाजारों में आदिवासी युवक-युवती एक दूसरे को पसंद करते है और बाजार में एक दूसरे को गुलाल लगाते है। युवक पहले युवती को गुलाल लगाता है, यदि युवती की सहमती होती है, तो वह भी युवक को गुलाल लगाकर सहमती प्रकट करती है। यदि वह असहमत होती है,तो गुलाल को पौछ देती है। सहमती पर दोनो एक दूसरे के साथ भाग जाते है। गांव वाले भगोरिया हाट में बने प्रेम प्रसंग को विवाह सूत्र में बांधने के लिए दोनो परिवारो से बातचीत करते है और होलिका दहन हो जाने के बाद विवाह संपन्न करवाये जाते है। भगोरिया हाट-बाजारों में युवक-युवती बेहद सजधज कर अपने भावी जीवनसाथी को ढूँढने आते हैं। इनमें आपसी रजामंदी जाहिर करने का तरीका भी बेहद निराला होता है। इसी तरह सबसे पहले लड़का लड़की को पान खाने के लिए देता है। यदि लड़की पान खा ले तो हाँ समझी जाती है।

                      भगोरिया का इतिहास- भगोरिया कब औऱ क्यों शुरू हुआ। इस बारे में लोगों में एकमत नहीं है। भगोरिया पर लिखी कुछ किताबों के अनुसार भगोरिया राजा भोज के समय लगने वाले हाटों को कहा जाता था। इस समय दो भील राजाओं कासूमार औऱ बालून ने अपनी राजधानी भागोरमें विशाल मेले औऱ हाट का आयोजन करना शुरू किया। धीरे-धीरे आस-पास के भील राजाओं ने भी इन्हीं का अनुसरण करना शुरू किया जिससे हाट और मेलों को भगोरिया कहना शुरू हुआ। वहीं दूसरी ओर कुछ लोगों का मानना है क्योंकि इन मेलों में युवक-युवतियाँ अपनी मर्जी से भागकर शादी करते हैं इसलिए इसे भगोरिया कहा जाता है।
                         
                                                           कुछ ग्रामीण बताते है कि भगोरिया भगोर रियासत को जीतने का प्रतीक पर्व है। भगौरिया पर्व भगौर रियासत की जीत की बरसी के रूप में खुशी को जाहिर करने के लिए मनाया जाता है। इस अवसर पर आदिवासी खूब नाचते है। गाना,गाते हें ठिठौली करते है। सामूहिक नृत्य इस पर्व की मुख्य विशेषता है। लेकिन समय के साथ-साथ यह प्रकृति और मनुष्य के रिश्तों को अभिव्यक्त करने वाला त्यौहार बन गया है।

                                            गोट प्रथा थीः- ग्रामीण बताते है कि भगौरिया हाटो में पहले महिलाएं समूह में बाजार में आती थी एवं किसी परिचित पुरूष को पकडकर उससे ठिठौली करती थी एवं उसके बदले उस पुरूष से मेले में धूमने एवं झूलने का खर्च लेती थी या पान खाती थी। इस प्रथा को गोट प्रथा कहा जाता था। यह भगौरिया हाट की परंपरा मानी जाती थी।

                                 भगोरिया पर्व को लेकर किवदन्तियों के अनुसार भगोर किसी समय अंचल का प्रसिद्ध व्यापारिक केन्द्र हुआ करता था और यहां के ग्राम नायक द्वारा एक बार जात्रा का आयोजन किया गया। जिसमें आस पास के सभी युवक युवतियों को आमत्रित किया गया। सज धज कर युवक युवतियों ने हिस्सा लिया। ग्राम नायक ने इस अवसर पर मेले जैसा आयोजन किया। आये हुए आगन्तुकों में एक सुन्दर एवं कमसीन बाला को देख कर ग्राम नायक का दिल उस पर आ गया ओर उसने उसे पान का बिडा पेश किया तो शर्मा कर उसने कबुल कर लिया और ग्राम नायक ने उस कन्या की सहमति से उसका अपहरण कर लिया याने उसे भगा कर ले गया और इसी परम्परा की शुरूवात को भगौरिया का नाम दिया गया एक और किवदन्नी के अनुसार शिव पुराण में भी भगोरिया का उल्लेख आता है जिसके अनुसार भव एवं गौरी शब्द का अपभ्रश भगोरिया के रूप में सामने आया है। भव का अर्थ होता है शिव और गौरी का अर्थ पार्वती होता है।-दोनों के एकाकार होने को ही भवगौरी कहा जाता है। अर्थात फाल्गुन माह के प्रारंभ में जब शिव ओर गौरी एकाकार हो जाते है तो उसे भवगौरी कहा जाता है। और यही शब्द अप्रभंश होकर भगोरिया के नाम से प्रचलित हुआ है।

                                  होली पर्व के सात दिन पूर्व से जिस ग्राम एवं नगर में हाट बाजार लगते है उसकों भगोरिया हाट कहा जाता है। भगोरिया पर्व,में आदिवासियों द्वारा गल देवता की मन्नत लेकर सात्विक जीवन व्यतित किया जाता है, जमीन पर सोते है तथा ब्रहमचर्य व्रत का पालन करते है तथा इन भगोरियो में सफेद वस्त्र लपेट कर शरीर पर पीली हल्दी लगा कर तथा हाथ में नारियल लेकर आते है। गल देवता की मन्नत लेकर सात दिन तक उपवास परहेज करते है एवं होलिका दहन के दूसरे दिन गल देवता को जो लकड़ी का बना लगभग 30-40 फीट ऊँचा होता है। उस पर मन्नत वाला व्यक्ति चढ जाता है। एवं उसे अन्य व्यक्तियों द्वारा रस्सी से उपर धुमाया जाता है। इसी प्रकार मन्नत उतारते है। भगोरिया पर्व का वास्तविक आधार देखे तो पता चलता है कि इस समय तक फसले पक चुकी होती है तथा किसान अपनी फसलों के पकने की खुशी में अपना स्नेह व्यक्त करने के लिये भगोरिया हाट में आते है। भगोरिया हाट में झुले चकरी, पान,मीठाई,सहित श्रृंगार की सामग्रिया,गहनों आदि की दुकाने लगती है जहां युवक एवं युवतियां अपने अपने प्रेमी को वेलेण्टाईन की तरह गिफ्ट देते नजर आते हैं। आज कल भगोरिया हाट से भगा ले जाने वाली घटनायें बहुत ही कम दिखाई देती है क्योकि शिक्षा के प्रसार के साथ शहरी सभ्यता की छाप लग जाने के बाद आदिवासियों के इस पर्व में काफी बदलाव दिखाई दे रहा है। कहा तो यह भी जाता कि भगोरिया भव अर्थात भगवान शंकर व गौरी अर्थात पार्वती के अनूठे विवाह की याद में उस विवाह की तर्ज पर भवगौरी अर्थात भगोरिया नाम से अब तक मनाया जाता है। भगवान शंकर का पुरूषार्थ व प्रणय ही इसी कारण से इसके मुख्य अवयव भी रहे हैं। बहरहाल आदिम संस्कृति की उम्र वे तेवर से जुड़े होने के कारण भगोरिया आदिवासी वर्ग की महत्वपूर्ण धरोहर है । इसे उतनी ही पवित्रता से देखा व स्वीकार किया जाना चाहिए। जिस पवित्रता के साथ किसी भी संस्कृति का वर्तमान अपने अतीत को स्वीकार करता है। इसी में भगोरिए के हर स्वरूप की सार्थकता भी है।
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Sunday, May 13, 2012

ओ रे चिरैया नन्ही सी चिड़िया ....Aamir Khan's Satyamev Jayate


इन पंक्तियों से शायद देश का कोई भी शख्स अनजान नहीं होगा...। जी हाँ ठीक समझा बात हो रही है आमिर खान(Aamir Khan) के शो सत्यमेव जयते ( satyameva jayate) की॥ बडे पर्दे पर फिल्मांकन और परिद्रश्यो से दुनिया भर की वावाही लुटने के बाद आमिर खान अब छोटे पर्दे पर भी हमेशा की तरह अपना वर्चस्व बरक़रार रखे हुए है... आमिर खान का शो फ़िलहाल स्टार प्लस के साथ ही दूरदर्शन पर भी एक ही समय प्रसारित किया जा रहा है। प्रति रविवार प्रसारित शो में समाज के कुछ ऐसे ज्वलंत मुद्दे जो २१ वी सदी में भी देश के, और आम आदमी के विकास में बाधक बने हुए है , ऐसे ही हर मुदे को देश की आवाम और आम जनता के सामने रखने हेतु आमिर खान का यह शो वचनबद्ध है... कार्यक्रम को देश भर का जबरदस्त रिस्पोंस मिल रहा है ... चारो तरफ t.v, newspaper, news channel सभी जगह एक ही मुद्दा सरोकार होता नज़र आ रहा है... ।

सत्यमेव जयते की आधिकारिक वेबसाइट पर तो आलम यह है की जबरदस्त ट्राफिक के चलते वेबसाइट ही कई घंटो तक अवरुद्ध रही... सच ही है की इस प्रकार की किसी घटना या मुदे को सीधे आम जनता तक पहुचाया जाता है तो आम आदमी का इस हेतु क्या दायित्व बनता है , और इस और जागरूकता हेतु सत्यमेव जयते और इसी प्रकार के कुछ और शो जो देश, समाज में से ऐसे कुरीतियों को और समाजवाद की आम धारणा को समाज में से उखाड़ फेकने हेतु वचन बद्ध है ... आमिर खान के साथ ही देश के हर नागरिक की यह दायित्व बनता है की समाज और देश में से इस प्रकार की आम धारणा , और कुरीतियों को जड़ सहित उखाड़ फेखने में एक जुट हो कर एक बेहतर और स्वस्थ समाज के निर्माण में भागीदार बने ,....
सत्यमेव जयते शो के साथ ही इसी शो का theme song भी बड़ा प्रचलित हुआ ... इसके lyrics आप सभी के साथ शेयर करना चाहूँगा ....

ओ री चिरैया
नन्ही सी चिड़िया
अंगना में फिर आजा रे

अँधियारा है घना और लहू से सना
किरणों के तिनके अम्बर से चुन के
अंगना में फिर आजा रे

हमने तुझपे हजारो सितम हैं किये
हमने तुझपे जहाँ भर के ज़ुल्म किये
हमने सोचा नहीं तू जो उड़ जाएगी
ये ज़मीन तेरे बिन सूनी रह जाएगी
किसके दम पे सजेगा मेरा अंगना

ओ रे चिरैया , मेरी चिरैया
अंगना में फिर आजा रे

तेरे पंखो में सारे सितारे जडू
तेरी चुनर धनक सतरंगी बुनूं
तेरे काजल में मैं काली रैना भरू
तेरी मेहंदी में मैं कच्ची धुप मलूँ
तेरे नैनो सजा दूं नया सपना

ओ री चिरैया , मेरी चिरैया
अंगना में फिर आजा रे......


मेरी और शायद देश के हर शख्स की मंगल कामना आमिर खान और उनके शो " सत्यमेव जयते " के साथ हमेशा रहेगी... आशा करता हूँ की आगे भी शो और इसी के साथ क्रमशः देश का हर नागरिक देश भर में व्याप्त कन्याभूर्ण, बाल शोषण जैसे ही अन्य गंभीर और ज्वलंत मुद्दों को जड़ से मिटाना हेतु प्रयासरत और वचनबद्ध रहेंगे .....
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